जिसमे यह भी साक्ष्य रखे गए कि पूर्व मे कादियां नगर मे एक सरकारी आलोपथी अस्पताल था जिसको कादियां से निकाल कर लीलकलां गावं के रास्ते मे शिफ्ट कर दिया गया। लोग स्वास्थ्य सेवाओं हेतु बड़ी सड़के, और उपयुक्त स्थान देखते हैं जहां से लोगों को सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो पाएं साथ ही साथ आने जाने मे किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े। किन्तु यहाँ तो अस्पताल को बाहर निकाल कर खुदी समस्याओं को खड़ा कर दिया गया है ।
समस्याएं :-
- लोगों के लिए सेवाएं प्राप्त करना हुआ मुश्किल।
- अस्पताल के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं उपलब्ध ।
- आने जाने के लिए रीक्शा मिलता है जिसमे आने जाने के लिए 50 रुपये जाने और 50 रुपये आने के लगते हैं भाव इलाज से महंगा तो वहाँ आना जान हुआ ।
- बीमार व्यक्ति कैसे पहुंचेगा इतनी दूर अस्पताल।
- सड़क इतनी चोटी और खराब की आने जाने मे लोग चोट लगवा लें।
- विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं उपलब्ध ।
- आपातकालीन कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं ।
- दोपहर 2 बजे के पश्चात नहीं मिलता आयुर्वेदिक इलाज।
भारतीय संविधान के अनुसार हमे हमारी स्वास्थ्य चिकित्सा प्रणाली चयन करने का अधिकार है, किन्तु नगर मे आयुर्वेदिक सेवाओं का हाल इतना बुरा है कि क्या कहें। एक डॉक्टर हैं उनको भी अलग अलग स्टेशन की जीमेदारी दे रखी है। दवाओं की आपूर्ति है। और शिकायतों पर सुनवाई शून्य।
सारी समस्याओं के साथ याचिका उप आयुक्त के समक्ष रखी गई जिस पर उप आयुक्त द्वारा हस्ताक्षर करके इस विषय को जिला आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डॉ परदीप सिंह जी के पास भेज दिया जिसमे उन्होंने इस विषय पर जांच के आदेश दिए। किन्तु आयुर्वेदिक अधिकारी ने एक बार भी कादियां आने का कष्ट नहीं किया न जांच कारवाई। बिन जांच के उतर भेजा कि हमारे पास पिछले 12 सालों से वहाँ आयुर्वेद कि डिस्पेंसरी चल रही है । और दबाव डालने पर और कई शिकायतों के बाद भी खुद न आकर शिकायतों को एक रिटायर्ड अधिकारी के साथ सांझा कर नियमों का उलंधन किया।