लोगों को सुख सुविधाएं देने के लिए अक्सर सरकारी परियोजनाएं बनाई जाती हैं जिससे लोगों को सेवाओं में आसानी हो। किंतु कई बार यह परियोजनाएं राजनैतिक रूप से प्रेरित होती हैं। ऐसा ही उदाहरण है कादिया का सिविल हॉस्पिटल।
नगर के बीचों बीच स्थित कादिया का हॉस्पिटल भी राजनीति का शिकार हुआ और यह हॉस्पिटल कादिया से उठा कर लीलकलां गांव की ओर एक गांव में ले जाया गया। जिसका शहर वासियों को तो कोई लाभ नहीं हुआ। किंतु वोट बैंक की राजनीति को इसका भरपूर लाभ मिला। और यह लाभ किसको कैसे मिला सब जानते हैं।
किंतु यहां लाभ से नहीं हुए नुकसान के बारे में जानना बहुत आवश्यक है।
- कादिया एक हॉस्पिटल था जो अब केवल एक हेल्थ सेंटर बन कर रह गया है।
- कादिया में जो सुविधाएं थी वो खतम कर दी गई हैं और डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं अब। केवल एक बच्चो के माहिर हैं जो भी सप्ताह में कभी कभी हो आते हैं।
- हॉस्पिटल जाने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी नही है और सुविधाएं भी नही।
- इमीजेंसी कभी 24 घंटे होती थी अब इमरजेंसी के नाम पर एक 24 घंटे का पट्टा है जबकि उपलब्ध कुछ नही। हर इमरजेंसी केस को बटाला भेज दिया जाता यां फिर प्राइवेट हॉस्पिटल जो 3 हैं नूर, सुख हॉस्पिटल और भाटिया हॉस्पिटल वहा ले जाया जाता। इसमें पब्लिक वेलफेयर कहां है।
- नूर हॉस्पिटल में एक कम्यूनीटी को निशुल्क सेवाएं हैं क्योंकि वह एक विशेष संस्था के लिए अपने लोगों के लिए बनाया गया है। किंतु बाकी पब्लिक को पेटेंट दवाओं के माध्यम से लूटा जाता है। जेनरिक दवाओं न उपलब्ध है और न आपको आपके रिकॉर्ड सांझे करने की अनुमति है। खैर इस विषय पर विस्तृत जानकारी अगली किसी पोस्ट में सांझा करेंगे। बात यहां समाप्त होती है कि स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है।
और इसमें केवल वोट बैंक की राजनीति थी जो यहां के पॉलिटिशियन की देन है। आज तक एक भी राजनेता अपने इलाज करवाने इस कम्युनिटी हेल्थ सेंटर नही गया। और तो और नूर जैसे हॉस्पिटल भी नही गया। यह अपने इलाज करवाने तो चंडीगढ़ भाग जाते तो इनको पब्लिक से क्या।
यहां पर सरकारी हॉस्पिटल था वह जमीन भी कैसे कहां गई इन पॉलिटिशियन को ही पता है।